महाराजा सूरज मल का इतिहास
महाराजा सूरज मल अर्थात् सुजान सिंह का जन्म यदुवंशी सिनसिनवार जाट कुल के राजा ठाकुर बदन सिंह के परिवार में हुआ था | आदि शंकराचार्य के सनातन जागरण काल के प्रभाव के फलस्वरूप अध्यात्म के शिखर पर अंहिसा का पुजारी बना भारतीय सनातन समाज पुनः सशस्त्र संघर्ष से अपने अस्तित्व एवं अपनी संस्कृति की रक्षा के लिये जाग्रत हो चुका था | एक ओर खालसा पंथ गुरुओं के नेत्रेत्व में सनातन संस्कृति के लिये संघर्ष कर रहा था तो दूसरी ओर औरंगजेब के जजिया कर एवं घोर अत्याचारों के फलस्वरूप से समस्त बृज क्षेत्र ने यदुवंशी कुल के गोकुल के गोकला के नेत्रेत्व में औरंगजेब को अपना सशक्त विरोध दर्ज कराया |
मारवाड में महाराणा प्रताप ने वर्षों तक मुगल शासक अकबर के साथ संघर्ष किया, लेकिन दासता स्वीकार नहीं की। फिर मुगलों की सत्ता को मराठवाडा में चुनौती दी छत्रपति शिवाजी महाराज ने। इसी दौरान वीर गोकुला (गोकुल सिंह) ने भी औरंगजेब की सत्ता को हिला दिया था | जो औरंगजेब के लिये चुनौती था | अन्त में औरंगजेब को स्वंय चलकर अपने पूर्ण बाहुबल से मथुरा के तिलपत गढी में युद्ध करना पडा | तीन दिन चले इस घनघोर युद्ध में बृज की सामान्य जनता एवं किसानों ने अपना सर्वस्व दाव पर लगा दिया | किन्तु युद्ध के अन्त में तिलपत गढी (हाल तलपति फरीदाबाद जिला) के लाल गोकुला एवं उनके चाचा उदय सिंह को गिरफ्तार कर औरंगजेब ने आगरा ले गया | जहां जा कर आज के फब्बारा चौक पर चाचा उदय सिंह की खाल उतार कर सिर काट कर मारा गया तो उसके बाद गोकुला के एक-एक अंग काट-काट कर क्रूर हत्या की किन्तु औरंगजेब गोकुला एवं उनके चाचा उदय सिंह को मुस्लिम बनाने में सफल नहीं हो सका |
इसके बाद यह आन्दोलन कुछ समय तक के लिये छितर वितर हो गया और गोकुल का वह परिवार सिनसिनी के नजदीक में सिनसिनी की पंचायत तक ही सिपट गया | यहां पर इसी कुल के भज्जासिंह/भगवंत सिंह के पुत्र राजाराम ने दो बडी खापों सिनसिनी की सिनसिनवार एवं सौघरवाल की चाहर खाप को पंचायतों के माध्यम से मिलाकर औरंगज़ेब के अत्याचारों का पुनः संगठित सशक्त विरोध करना प्रारम्भ किया | राजाराम सिनसिनवार एवं रामकी चाहर ने सुरक्षा की दृष्टि से पूरे बृज क्षेत्र में छोटी-छोटी किले नुमा गढियां बनवा दी | इस प्रकार से एक राज्य का विस्तार होने लगा और एक संगठित सैना बनाकर राजाराम सिनसिनवार उसका प्रशिक्षण करने लगा तथा मुगलों को ढूंढ-ढूंढकर मारने लगा | तथा मुगल शासित गैर मुगल अधिकारियों एवं नागरिकों से मालगुजारी लेने लगा | जिसकी भनक जब दक्षिण में औरंगजेब को लगी तो उसने तुरन्त एक सैना भेजी तो फिर दूसरी सैना भेजी जब तक राजा राम सिंह ने आगरा पर आक्रमण करके आगरा का एक दरवाजा तोड कर नष्ट कर दिया था और सिकन्दरा में अकबर व शाहजहाँ की कब्रों को भी भारी नुकशान पहुंचा कर उनकी अस्थियों को जला दिया | इसके बाद मुगल और उसकी सैना राज राम सिंह सिनसिनवार के नाम से भी भयभीत रहने लगी | अन्त में 1688 के युद्ध में औरंगज़ेब के सैनिकों ने पीछे से धोके से वार कर राजा राम सिंह को मार दिया |
उधर पूर्व में दिल्ली हाथ से निकल जाने के बाद अनंगपाल तौमर ने बृज में मथुरा को अपना ठिकाना बनाया था | मथुरा मेमायर्स के अनुसार उस समय मथुरा पांच हिस्सों में बटा हुआ था:- अढींग, सौंसा, सौंख, फरह और गोवर्धन | ये सारे तौमर कुल के ही अधीन थे और चुंकि तौमर कुन्ती पुत्र (पांडव वंशी) थे तो कुन्तल और यह क्षेत्र कुन्तल पट्टी (अंग्रेजी के कारण के खुन्टल पट्टी और ये लोग खुन्टैला भी कहे गये |
पंडित गोकुलचंद चौबे लिखते हैं कि "बृज का खोया हुआ वैभव तो राजा हठी सिंह ने लौटाया था | क्योंकि उन्होंने सच्चे अर्थों में बृज का संरक्षण और गोवर्धन किया अत: वे ही सच्चे बृज केसरी थे |" सौंख के तौमर वंशी राजा हठिसिंह को ही, अडिंगपाल, अतिराम कुंतल आदि नामों से जाना गया | मथुरा मेमायर्स के अनुसार मथुरा के इन पांचों किलो पर जाट तौमर वंश कि कुन्तल शाखा की कुल 22 पीढियों ने राज किया | और लगातार मुसलमानों और मुगलों से संघर्षरत रहे | अन्त में जब गोकुल से कृष्ण वंशीयों ने मुगलों का प्रतिकार करना प्रारम्भ किया तो गोकुल के गोकुला, राजा राम सिंह और राजा चूडामन की इस तौमर कुलीय राजाओं ने समय-समय पर भरपूर सहायता की | अडिंग के राजा अनूप सिंह ने महाराजा सूरजमल के पिता राजा ठाकुर बदन सिंह को भी प्रत्यक्ष रूप से महत्वपूर्ण सैनिक सहायता पहुंचाई |
जिसके बाद राजा राम सिंह के भाई इस कुल में राजा ठाकुर चूडामन सिंह व फिर महाराजा ठाकुर बदन सिंह ने वृज राज्य में नए नगर बसाए जिन में अनेक सुव्यवस्थित एवं सुरक्षित किले और महलों का निर्माण करवाया तथा वृज के अनेकों मठ मन्दिरों का पुन: निर्माण कराया जिनको मुगलों ने तोडा या खण्डित किया था |
इसी यदुवंशी कुल के महाराजा ठाकुर बदन सिंह जी के यहां अट्ठारवीं सदी के सबसे सफलतम हिन्दू धर्म रक्षक यौद्धा सुजान सिंह का जन्म हुआ था |
बालक सुजान वातावरण एवं व्यवस्थाओं से लगातार सकारात्मक रूप से प्रोत्साहित होता रहा एवं शीघ्र ही अपनी प्रारम्भिक तरुण अवस्था से ही अपनी न्याय परकता, कुशाग्र बुद्धि, भुज बल एवं वीरता से ठाकुर वदन सिंह के साथ समस्त राज कार्यों में अविभाज्य सहयोग और समन्वय की भूमिका स्थापित करने लगा |
"नहीं जाटनी ने सही वर्थ प्रशव पीर
जन्मा उसके गर्भ से 'सूरज-मल्ल' सा वीर"
अर्थात् जो बाद में अपने सूरज के समान दिव्य योद्धेय व्यक्तित्व के कारण सूरजमल/ सूरजमल्ल ( "मल्लों में मल्ल बडो तो सूरज मल्ल बडो" अर्थात ततकालीन पहलवानों/ योद्धाओं/ शासकों के बीच श्रेष्ट थे सुजान सिंह जो सूरजमल्ल नाम से प्रसिद्ध हुए |
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