Top 10 Penny Stocks in 2024 Penny stocks are typically associated with companies that have small market capitalizations, limited liquidity, and higher volatility. It's essential to conduct thorough research and consider consulting with a financial advisor before investing in penny stocks. Additionally, the performance of penny stocks can fluctuate significantly, and what may seem like a promising investment today could become highly volatile or even worthless in the future. That said, I can provide a list of penny stocks that have shown potential in 2024 based on various factors such as market trends, industry performance, and company developments. However, please remember that investing in penny stocks carries inherent risks, and these suggestions should not be considered as financial advice. What are Penny Stocks? Penny stocks, typically defined as stocks trading at a low price per share, often garner attention from investors seeking high-risk, high-reward opportunities. ...
कृष्ण_भक्ता_विदुर_पत्नी_पारसंवी
*महात्मा विदुर की पत्नी का नाम पारसंवी था। पारसंवी का भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति प्रेम था। महात्मा विदुर हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ आदर्श भगवद्भक्त, उच्च कोटि के साधु और स्पष्टवादी थे।* यही कारण था कि दुर्योधन उनसे सदा नाराज ही रहा करता था तथा समय असमय उनकी निन्दा करता रहता था। धृतराष्ट्र और भीष्म पितामह से अनन्य प्रेम की बजह से वे दुर्योधन के द्वारा किये जाते अपमान को सहर्ष स्वीकार कर लेते थे। हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री होने के बाद भी उनका रहन-सहन एक सन्त की ही तरह था। श्रीकृष्ण में इनकी अनुपम प्रीति थी।
*इनकी धर्मपत्नी पारसंवीजी परम साध्वी, त्यागमूर्ति तथा भगवद्भक्तिमयी थी।*
भगवान श्रीकृष्ण जब दूत बनकर संधि प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर पधारे, तब दुर्योधन के प्रेमरहित महान स्वागत-सत्कार किया। दुर्योधन द्वारा संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करने के उपरांत दुर्योधन ने उन्हें रात्रि विश्राम और भोजन आदि करने को कहा। *भाव रहित दुर्योधन का यह आतिथ्य श्रीकृष्ण ने अस्वीकार कर दिया।*
*कारण पूछने पर श्रीकृष्ण ने कहा*-
*हे दुर्योधन ! "किसी का आतिथ्य स्वीकार करने के तीन कारण होते है।-*
*भाव, प्रभाव और अभाव"* अर्थात तुम्हारा ऐसा भाव नहीं है जिसके वशीभूत तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार किया जाये।
तुम्हारा ऐसा प्रभाव भी नहीं है जिससे भयभीत होकर तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार किया जाये तथा मुझे ऐसा अभाव भी नहीं है जिससे मजबूर होकर तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार किया जाये।" इसके बाद श्रीकृष्ण वहाँ से प्रस्थान कर गये।
*श्रीकृष्ण महात्मा विदुर और उनकी धर्मपत्नी पारसंवी के भाव को जानते थे। दुर्योधन के महल से निकल कर वे महात्मा विदुर के आश्रम रूपी घर पर पहुंचे। महात्मा विदुर उस समय घर पर नहीं थे तथा पारसंवी नहा रही थीं।
*द्वार से ही श्रीकृष्ण ने आवाज दी द्वार खोलो, मैं श्रीकृष्ण हूँ, और बहुत भूखा भी हूँ। पारसंवी ने जैसे ही श्रीकृष्ण की पुकार सुनी तो भाव के वशीभूत तुरन्त बैसी ही स्थिति में दौड़ कर द्वार खोलने आ गयीं। उनकी अवस्था को देख अपना पीताम्बर पारसंवी पर ड़ाल दिया। प्रेम-दिवानी पारसंवी को अपने तन की सुध ही कहाँ थी*
उसका ध्यान तो सिर्फ इस पर था कि द्वार पर श्रीकृष्ण हैं और भूखे हैं। पारसंवी श्रीकृष्ण का हाथ पकड़कर अन्दर खींचते हुए ले आई। श्रीकृष्ण की क्षुधा शान्त करने के लिए उन्हें क्या खिलाये यही कौतूहल उसके मस्तिष्क में था।
*इसी प्रेमोन्मत्त स्थिति में उसने श्रीकृष्ण को उल्टे पीढ़े पर बैठा दिया।*
श्रीकृष्ण भी पारसंवी के इस अनन्य प्रेम के वशीभूत हो गये और उस उल्टे पीढे पर बैठ गये। दौड़ कार पारसंवी अन्दर से श्रीकृष्ण को खिलाने के लिए केले ले आयी, और श्रीकृष्ण की क्षुधा शान्त करने के लिए उन्हें केले खिलाने बैठ गयी।
*श्रीकृष्ण के प्रेमभाव में वह इतनी मग्न थी कि वह केले छिल-छिल कर छिलके श्रीकृष्ण को खाने के लिए दिये जा रही थी तथा गूदा फेंकती जा रही थी।*
श्रीकृष्ण भी पारसंवी के इस अनन्य प्रेम के वशीभूत हो केले के छिलके खाने का आनन्द ले रहे थे। तभी महात्मा विदुर आ गये। वे कुछ देर तो स्तम्भित होकर खड़े रहे, फिर उन्होंने यह व्यवस्था देखकर पारसंवी को डांटा, तब उसे होश आया और वह पश्चाताप करने के साथ ही अपने मन की सरलता से श्रीकृष्ण पर ही नाराज होकर उनको उलाहना देने लगी-
*छिलका दीन्हेे स्याम कहँ, भूली तन मन ज्ञान।*
*खाए पै क्यों आपने, भूलि गए क्यों भान।।*
भगवान इस सरल वाणी पर हँस दिये।
*भगवान ने कहा- "विदुर जी आप बड़े बेसमय आये। मुझे बड़ा ही सुख मिल रहा था। मैं तो ऐसे ही भोजन के लिये सदा अतृप्त रहता हूँ।"*
अब विदुर जी भगवान को केले का गूदा खिलाने लगे।
*भगवान ने कहा- "विदुर जी आपने केले तो मुझे बड़ी सावधानी से खिलाये, पर न मालूम क्यों इनमें छिल्के-जैसा स्वाद नहीं आया।"*
विदुरपत्नी के नेत्रों से प्रेम के आँसू झर रहे थे।
*ऐसा होता है भक्तों का प्रेमोन्माद जिसके भगवान् भी सदा ही भूखे रहते हैं।*
Thanks For Reading Have A Great Day
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