दामाद जी अपने ससुराल में
पहले के जमाने में दामाद की पूछ परख और स्वागत का तरीका भी अलग ही ढंग का होता था.. जब कभी दामाद जी ससुराल जा धमकते अफरातफरी का माहौल बन जाता था....यदि पूर्व सूचना पर आगमन होता तो क्या कहने।
एक दो आदमी स्टेशन आते एक सूटकेस थामता पहले से तय किये रिक्शे में दामाद को बीचो बीच सैट कर दिया... अगल बगल यमदूत बैठ जात...कहीं कूद कर भाग ना जाये...यात्रा का हालचाल पूंछते, रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई, बर्थ तो कन्फर्म थी ना, लोवर थी या अपर थी, टी सी आया था एकाद बार, आदि आदि सैकडों सबालात का जवाव देते दामाद जी का रिक्शा ससुराल घर के करीव जा खडा होता..!
अब आगे संकरी गली होती..लेने आये यमदूत बताते बस जीजा जी थोडा सा पैदल चलना है..वो तीसरे घर के आगे अपनई वाला घर है.... नगर निगम लगा है रोड बनबाने को अध्यक्ष से बात हुई है, हम लोगो की..अगली बार आयेगे आप तो शायद रोड बनी मिलेगी..!
ये होता था यमदूतो का अपनी पहुँच और पकड़ बताने तरीका...खैर बहनोई साहव रिक्शा से उतरते है....!
ससुराल गली का भी एक अलग ही रूआव होता है.. दामाद जी उतरते ही पहले बालो में हाँथ फैरते... ट्रेन के सफर सुकड चुकी वुशर्ट को सिलबटो को खींच कर ठीक करते... एक ऊँगली सीधी करके आख में जम आये कीचड़ को निकालने को कोशिश भी इस बीच कर डालते..!
आहिस्ता आहिस्ता ससुराल घर की तरफ कदम बढते.. पुराने जमाने की वी आई पी का सूटकेस थामे एक यमदूत दो कदम पीछे ही चलता.... एक बगल में गली में बने गड्ढे बताते हुये मार्गदर्शन बनता..!
मोहल्ले की कुछ औरते और लडकिया छतो पर आगमन करते दामाद के दर्शन हेतु छत पर मौजूद होती..इन सबका ऐसा प्रभाव होता कि दामाद अपनी वास्तविक चाल ही भूल जाता...!
पत्नी की गली की सुगन्ध ही ऐसी होती है। ऐसे ही ना थे तुलसीदास... सांप उन्हें रस्सी दिखाई दिया.. लटक कर खिडकी चढ गये थे और खिडकी की छड पकड़ ली थी। मुर्दे को नाव माना था.. सचमुच प्रेम अंधरा होता है।अंधा क्या बहरा गूँगा तक होता है...!
दामाद जी उस बक्त अपने आप को राजेश खन्ना से कम ना मानते.. चाल लचक मचक कर हो जाती..!
लो जीजू आ गया घर, मार्गदर्शक बताता और हाथ से देहरी चढने का इशारा करता...!
आगे का कमरा आज करीने से सजा होता.. पलंग पर नई चादर होती... किसी खूवसूरत हाँथो ने चादर पर हाँथ फेर कर सिलबटो को दूर किया होता था..!
टेबिल स्टूल पर क्रोशिया से बने झक सफेद टेविल कवर होते....कोने में नये खरीदे फूलों का गुलदस्ता होता.. दीवार पर दादा दादी की फोटो पुछी होती और उस पर नई माला लटकाई गई होती..!
सबसे खूबसूरत होता दामाद की पत्नी की कालेज स्कूल को एक फोटो जवरन उस दिन अलमारी में फ्रेम करके रखी होती.. जिसमें बन्नो किसी ऊंचे टेविल पर ठुड्डी पर हाँथ रखे सोफे पर बैठ चुके दामाद जी को देख रही लगती होती..!
अंदर से खुसुर पुसुर की आवाज आती। शायद दिशा निर्देश दिया जाता है जाओ बारी बारी से पैर छुओ..!
घर के छोटे बच्चे आते साफ सुथरे....लगभग सभी के बदन पर नये कपडे ही होते...रोज बहती नाक को आज उनकी अम्माओ ने गीले पेटीकोट से इतनी जोर से रगड कर साफ किया होता कि सालो की नाके लाल और सीधी दिखाई देती... सकुचाये से आकर पैर छूते..एक परिचय देता...ये तीनों गुड्डू के है ये चारों पप्पू के है, ये बुआ का है, ये छतरपुर बाली मौसी के है, ये पडौस के शर्मा जी का है, ये तीन चंपू, पुल्लू, बिल्लू पने बडे भैया के है...!
दामाद फौज देख कर आत्मविभोर हो उठता...फिर आती रंग विरंगी मुहल्ले की सालिया...जीजू नमस्ते, जीजू अभी तो रहोगे ना, जीजू आफिस कैसा है आपका, जीजू कौन सी गाडी से आये...जीजू संकोच भरी मुस्कान के साथ सबका जवाव देता.. कब जाओगे जीजू... जीजू बताते कल बापसी है..रिजर्वेशन है..रिजर्वेशन शब्द पर जोर देकर जीजू बताता...छाती उस बक्त चौडी रहती..!
साली इतराती इठलाती, अभी रूको ना जीजा, हम टिकट फाड देगे आपका...कोई कहता जीजा शिल्पा टाकीज में शम्मीकपूर की हुडदंग पिक्चर, लगी है...!
तभी कोई सरहज आती और सबको डांटती चलो तुम लोग...अभी आये है हाँथ मौ धोवे दो..थके आये है आराम करने दो....देखो वाथरूम में गरम पानी रखो चलो सब लोग...!
फिर सरहज द्वारा आँचल को हाथ की ऊँगली में फंसा कर पैर छूते जाते..!
अंदर खाने की तैयारी पर डिसकशन होता। ये मुन्ना कहाँ मर गया..!
आया बाबूजी.
जाओ राधे हलबाई के यहाँ से गरम जलेवी, आठ समोसा चार कचोरी लेके आओ.....बोल के रखा है। अच्छी बाली देगा.... और हाँ आना पीछे के दरबाजे से... समझ गये ना.... साइकल से जाना और जल्दी आना..!
एक लडका हाँथ में झोला लिये दन्न से दामाद के सामने से होता हुआ निकल जाता...चंपू मनोहर के यहाँ से दही ले आये थे....कित्ता लाये हो....?
एक पाव........ ठीक है हो जायेगा...!
घर की औरते खाने की तैयारी में जुट जाती.. दामाद नहाने जाता तो पहली बार चड्डी तौलिया देने उसकी पत्नी आती जो अभी तक सखियों के साथ ठिलिल खिलिल में लगी थी...!
तब जाकर दामाद अपनी बीबी को देख पाता जिसे लिवाने वो ससुराल तक आ धमका था...!
तब पति धीरे से बोलता वो अटैची में आधा किलो लड्डू रखे है निकाल लो और अंदर दे देना...!
लड्डू लाये हो कुछ और ले आते अच्छी सी मिठाई मालूम तो है पहली बार आ रहे हो.... आप ही दे देना निकाल कर...इतना कह कर दुल्ली चड्डी तौलिया रस्सी पर टांग कर रफूचक्कर हो जाती...!
दामाद नया कुर्ता पजामा पहन कर फिर ड्राइंग रूम की शोभा बढाने लगता...ये नया कुर्ता पजामा भी उसने खास आज दिन के लिये ही खरीदा होता था...!
खाना बन गया...आबाज आती काये जे जमीन में बैठ के खात है कि टेवल कुरसी पे...!
पत्नी की आवाज दामाद सुनता, कहीं भी बैठ जाते है... जहां परस दो...!
खाना लगता..उस दिन थाली विविध व्यन्जनो बाली होती....छोले, आलू गोभी, एकाद सूखी सब्जी, दाल फ्राई, चावल दही बडा, गरम पूडी, एक प्लेट में गुलाब जामुन, गुजिया, सलाद पापड,चटनी जो सासू ने अपने होनहार दामाद के लिये अथक मेहनत से तैयार किया होता था...!
तीन चार गरमागरम पूरी पेल चुके दामाद के कान अंदर की और ही होते...पत्नी की मीठी बोली सुनने को आतुर। तभी सासू की किलकिलाती आवाज आती... काये बिन्नू इने कुछ और तो पसन्द नईया ना... खावे को तो दे दओ पेले पूंछवे को भूल गये हते..!
तब पत्नी की आवाज आती....नई अम्मा सब खा लेते है ये तो...जो भी बना दो...बस जब इनकी अम्मा आती है तो लडियाते है, अम्मा मोटी रोटी बना दो घी चुपर देना...!
काय तुमाये बाबू जी के नखरे तो भौत हते.. उन्हें तो बिना बूरा के खाना पचत नई हतो.. एक बार बूरा खतम तो तीन दिना तक मुंह फुलाये रये... चलो जे अच्छी बात जे सीधे है कुछ भी खा लेते है...काय पूंछ लो मोटी रोटी खाने हो तो अबई बनाये देते है...पैले काय नई बताई...!
अब चुप भी करो अम्मा, बहाँ तक आवाज जाती है... जाओ तुमई पूंछ आओ..
तब सासू मा आती.. काय मोटी रोटी बना दयें..
सात आठ गरम पूडी पेल चुका दामाद मुंह में कौरा भरे हाँथ मटका कर मना करता.....!
तभी पत्नी दो पूरी और थाल में लाकर पटक देती..बीच बीच में सरहज साली मीठा खाने पर जोर दे जाती बस जीजू ये एक गुलाब जामुन और बस लास्ट हमारी तरफ से...!
मटके की तरह पेट फुलाये दामाद आगे कमरे के पलंग पर आकर बिछ जाता... नाक बजती और नींद घेर लेती..!
शाम को उनका सबसे व्यस्त साला आता। जो हम उम्र ही होता... गुडू, पंपू जैसा नाम होता उसका....ये वही दरियादिल साले साहव होते जो अपनी बहन के रिशते के लिये ऐसा लडका चाहते थे जो सीधा साधा हो और खाता पीता ना हो....!
अरे जीजा कब आये...पैर बो घुटने छूकर प्रेम जताता.... फिर जांध पर हाँथ ठोंक कर पूंछता और सुनाइये क्या हाल चाल है...नौकरी सौकरी कैसी चल रही है... दोपहर का खाना हुआ ना..!
कुछ देर बाद हाँथ मुंह धोकर क्रीम चुपरते हुये फिर कमरे में दाखिल होता और बोलता आओ जीजा घूम कर आते है...!
फिर अंदर हांक लगात.... अम्मा, जीजा को ले जा रहे है घुमाने.... रात का खाना मत बनाना, परेशान मत होना.... वो सोहन है ना उसने निमन्त्रण किया है जीजा का, बोल रहा था मिलने की बडी इक्छा है...!
उसके पास फटफटी होती थी।सीट पर हाँथ मार कर बैठो जीजा आते है....!
गाडी फुर्र हो जाती... रास्ते में ही मुंडी घुमा कर पूंछता जीजा जी चलता है ना...
दामाद सकुचाता, नहीं भाई...
अरे चलता है जीजा.... जीजी बता रही थी....कभी कभार...
गाडी सोहन के घर जा पहुचती...
सोहन का आज इतजाम फुल होता.... सेब काजू तक होते.... ना ना करते तीन चार पैग हो ही जाते..फिर ढावे में भोजन...!
अपनी बहन के लिये शराव ना पीने बाला पति ढूढने बाला साला अब हम प्याला होता....!
विदा होती तो टीका, बारी बारी से दो चार सौ रुपये भी हाँथ लगते....जो रास्ते में पत्नी को आइसक्रीम खिलाने में निपट जाते.. पापड अचार अलग से समेट लाता...स्टेशन चार छः लोग पहुचाने आते.... जगह बनाते बैठाते...ट्रेन चलने तक हाँथ हिलाते...!
अब कहाँ ऐसी ससुराल और आवाभगत.... अब तो जाओ तो सालिया बोलती है जीजा नैट चल रहा है ना.. प्लीज प्लीज जीजू जियो का रीचार्ज कर दो हमारे में..!
पढ़ने के लिए ,आपने अपने व्यस्त जीवन से मुझे अपना कीमती समय दिया, आपके लिए मैं अपना आभार प्रकट करता हूँ, आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
Comments
Post a Comment