अर्थ का महत्व
एक गाँव में एक बनिया और एक कुम्हार था। कुम्हार ने बनिये से कहा, मैं तो बर्तन बनाता हूँ, पर गरीब हूँ...
तुम्हारी कौन सी रुपये बनाने की मशीन है जो तुम इतने अमीर हो?
बनिये ने कहा - तुम भी अपने चाक पर मिट्टी से रुपये बना सकते हो।
कुम्हार बोला - मिट्टी से मिट्टी के रुपये ही बनेंगे ना, सचमुच के तो नहीं बनेंगे।
बनिये ने कहा - तुम ऐसा करो, अपने चाक पर 1000 मिट्टी के रुपये बनाओ, बदले में मैं उसे सचमुच के रुपयों में बदल कर दिखाऊँगा।
कुम्हार ज्यादा बहस के मूड में नहीं था... बात टालने के लिए हाँ कह दी।
महीने भर बाद कुम्हार से बनिये ने फिर पूछा - क्या हुआ ? तुम पैसे देने वाले थे...
कुम्हार ने कहा - समय नहीं मिला... थोड़ा काम था, त्योहार बीत जाने दो... बनाउँगा...
फिर महीने भर बाद चार लोगों के बीच में बनिये ने कुम्हार को फिर टोका - क्या हुआ? तुमने हज़ार रुपये नहीं ही दिए... दो महीने हो गए...
वहां मौजूद एक-आध लोगों को कुम्हार ने बताया की मिट्टी के रुपयों की बात है।
कुम्हार फिर टाल गया - दे दूँगा, दे दूँगा... थोड़ी फुरसत मिलने दो।
अब कुम्हार जहाँ चार लोगों के बीच में मिले, बनिया उसे हज़ार रुपये याद दिलाए... कुम्हार हमेशा टाल जाए...लेकिन मिट्टी के रुपयों की बात नहीं उठी।
6 महीने बाद बनिये ने पंचायत बुलाई और कुम्हार पर हज़ार रुपये की देनदारी का दावा ठोक दिया।
गाँव में दर्जनों लोग गवाह बन गए जिनके सामने बनिये ने हज़ार रुपये मांगे थे और कुम्हार ने देने को कहा था।
कुम्हार की मिट्टी के रुपयों की कहानी सबको अजीब और बचकानी लगी। एकाध लोगों ने जिन्होंने मिटटी के रुपयों की पुष्टि की वो माइनॉरिटी में हो गए। और पंचायत ने कुम्हार से हज़ार रुपये वसूली का हुक्म सुना दिया...
अब पंचायत छंटने पर बनिये ने समझाया - देखा, मेरे पास बात बनाने की मशीन है... इस मशीन में मिट्टी के रुपये कैसे सचमुच के रुपये हो जाते हैं, समझ में आया ?
इस कहानी में आप नैतिकता, न्याय और विश्वास के प्रपंचों में ना पड़ें... सिर्फ टेक्निक को देखें...
बनिया जो कर रहा था, उसे कहते हैं narrative building...
कथ्य निर्माण...
सत्य और तथ्य का निर्माण नहीं हो, कथ्य का निर्माण हो सकता है.
अगर आप अपने आसपास कथ्य निर्माण होते देखते हैं, पर उसकी महत्ता नहीं समझते, उसे चैलेंज नहीं करते तो एकदिन सत्य इसकी कीमत चुकाता है...
हमारे आस-पास ऐसे कितने ही नैरेटिव बन रहे हैं।
ये सब दुनिया की पंचायत में हम पर जुर्माना लगाने की तैयारी है. हम कहते हैं, बोलने से क्या होता है?
कल क्या होगा, यह इसपर निर्भर करता है कि आज क्या कहा जा रहा है।
इतने सालों से कोई मेरी जायदाद उठा कर नहीं दे दी थी...
सिर्फ मुँह से ही बोलने से क्या होता है?
बोलने से कथ्य-निर्माण होता है... दुनिया में देशों का इतिहास बोलने से, नैरेटिव बिल्डिंग से बनता बिगड़ता रहा है।
हम अक्सर नैरेटिव का रोल नहीं समझते...
हमने अपने नैरेटिव नहीं बनाए हैं... दूसरों के बनाये हुए नैरेटिव को सब्सक्राइब किया है...
अगर हम अपना कथ्य निर्माण नहीं करेंगे, तो सत्य सिर्फ परेशान ही नहीं, पराजित भी हो जाएगा...
इसे पढ़ने के लिए ,आपने अपने व्यस्त जीवन से मुझे अपना कीमती समय दिया, आपके लिए मैं अपना आभार प्रकट करता हूँ, आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
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